Visiting the Samadh of Maharaja Ranjit Singh and graves of two Frenchmen in Lahore (in Hindi)....by K J S Chatrath
यह कहानी है लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की समाधि और उनकी पोती की कब्र, उनके एक फ्रांसीसी जनरल मकबरे व उसकी बेटी के कब्रों की । कुछ समय पहले मैंने एक लेख पढ़ा जिसमें बताया गया था कि महाराजा रंजीत सिंह के एक फ्रांसीसी जनरल या फ्रान्स्वअ अलार ने ला फोंतैन की प्रसिद्ध फ्रांसीसी रचना 'फाब्ल' की चित्रकारी लाहौर के एक नामी चित्रकार इमाम बक्श लाहौरी से करवाने में एक अहम् भूमिका निभाई थी । मैं कुछ समय से भारत में फ्रांसीसी कब्रों पर लिखे हुए संदेशों पर शोध कर रहा हूं। मेरे मन में जिज्ञासा उठी यह जानने की कि अलर की मृत्यु कहां हुई थी और उसकी कब्र कहां है ।
बहुत समय से मेरे मन में पाकिस्तान जाकर अपने जन्म स्थल स्यालकोट की यात्रा करने की इच्छा थी, लेकिन कई कारणों से अब तक उसे स्थगित करता आ रहा था। लेकिन इस बार मैंने स्यालकोट और लाहौर जाने का फैसला कर ही डाला । बहुत उत्सुकता और कुछ अजीब सी हिचकिचाहट के साथ मैं लाहौर पहुंचा। पहले दो दिन मैंने इस सुंदर शहर की सैर की । फिर मैं निकल पड़ा फ्रांसीसी जनरल अलार की कब्र का पता लगाने।
मैंने शहर के विभिन्न भागों में दो ब्रिटिश कब्रिस्तानों को देखा, लेकिन जनरल अलर की या और किसी फ्रांसीसी कब्र का कोई पता नहीं चला। बातों-बातों में एक भद्र दुकानदार ने बताया कि 'कुड़ी बाग' में एक फ्रांसीसी कब्र है। पंजाबी भाषा में बेटी या छोटी लड़की को कुड़ी कहते हैं। मैंने सोचा था कि लड़की के पिता की कब्र भी वहीं होगी।
मुझे लगा कि मैं शायद मंजिल के करीब पहुंच रहा था। दो बार ऑटो रिक्शा बदलने के बाद मैं एक बाजार में पहुंचा, जहां मैंने जब एक पान वाले से 'कुड़ी बाग' का बारे में पूछा तो उसने सिर हिलाया और कहा 'हां जनाब।' वह 'मुंशी चैम्बर्स' के पास है । उसने मुझे कुछ मोटे तौर पर वहां पहुंचने का रास्ता बताया। लेकिन शायद मैंने समझने में भूल की थी क्योंकि जब मैं बताई हुई जगह पर पहुंचा तो वहां न तो कोई बाग दिखा और न ही कोई कब्र |
मैंने फिर एक और दुकानदार से मदद मांगी। वह एक लम्बे कद का, तीखे नैन नक्श और लम्बी काली दाढ़ी वाला गोरा व्यक्ति था, जिसने साफ सफेद कुर्ता-पायजामा पहन रखा था और शायद 25- 30 साल का होगा। उसकी नजर भारत के छोटे तिरंगे झंडे पर पड़ी, जो मैंने अपनी कमीज की जेब पर लगा रखा था। 'आह तो आप इंडिया से आये हैं, उसने कहा। अगले कुछ मिनट उसने मुझे इंडिया के बारे में कई प्रश्न पूछे, क्योंकि मैं एक ईसाई की कब की खोज कर रहा था, तो उसने बड़ी ही उत्सुकता से हिन्दू दाह संस्कार के तरीके के बारे में पूछा । उसका विचार था कि मुसलमानों का दफन करने का तरीका सबसे अच्छा है, जबकि मैंने कहा कि हिन्दू प्रणाली श्रेष्ठ है । अंत में हम दोनों अपनी-अपनी असहमति पर सहमत हो गए। फिर हम दोनों मुस्काराये और यह चर्चा वहीं छोड़ दी और ध्यान 'कुड़ी बाग' पर केंद्रित किया ।
हां, मुझे एक फ्रांसीसी लड़की की कब्र का पता है और वह जगह यहां से दूर नहीं । उसने बताया, 'अगर आप पांच मिनट इंतजार करें तो मैं आपको वहां ले जाऊंगा।' उसने कहा, 'असल में मुझे स्कूल से अपनी बच्ची को लाना है और उसकी छुट्टी कोई पांच मिनट में होगी । उसका स्कूल इस 'कुड़ी बाग' के पास ही है। लिहाजा आप को खुद वह जगह ढूंढने में बहुत मुश्किल होगी, उसने समझाया। मैंने बड़ी प्रसन्नता से उसका सुझाव मान लिया और हमारी बातचीत प्राय पांच मिनट और चलती रही।
फिर अचानक उसने कहा चलें जनाब और कूदकर अपनी डा. के.जे.एस. चतरथ मोटरसाइकिल पर जा बैठा। मैं 65 साल का बुड्ढा इस सवारी का शौकीन नहीं हूं लेकिन मैंने इसे अपने देश की इज्जत का सवाल माना और पिछली सीट पर जा सवार हुआ । हां, जब मोटरसाइकिल चली तो मुझे इस सवारी का मजा आने लगा। पर यह सैर जल्दी ही समाप्त हो गई और उसने एक बड़े गोलाईनुमा गेट के पास गाड़ी रोक दी। मेरे मेहरबान ने मुझे एक छोटा तंग रास्ता दिखाया, जो इमारत के पीछे की ओर जा रहा था जहां कब्र थी। उसने अपनी घड़ी देखी और कहा 'स्कूल टाइम' और फिर 'खुदा हाफिज़' कहकर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर चल दिया।
मैं कुछ निराश हुआ, क्योंकि मुझे तो वहां कोई बाग नजर नहीं आया। चारों तरफ इमारतें ही इमारतें थीं। इमारत के पीछे मैंने एक बहुत छोटी सी खाली जगह पाई, जो कभी एक बाग रहा होगा। उसके एक तरफ कुछ ऊंचाई पर एक मकबरे में है, एक नन्हीं फ्रांसीसी लड़की की खामोश कब्र । अब वहां न तो कोई बाग है और न ही किसी बाग के अवशेष । वहां मौजूद हैं लोहे के ताला लगे एक गेट के पीछे दो कब्रें जिनमें से एक कब्र है जनरल अल्लर की लड़की की और दूसरी खुद जनरल अल्लर की, क्योंकि वहां ताला लगा हुआ था, 'मैं कब्रों के पास नहीं जा पाया । '
जनरल फ्रान्स्वअ अलार,
जिन्होंने यह मकबरा बनवाया, वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में प्रशिक्षण देते थे। अलार 1803 में फ्रांसीसी फौज के घुड़सवार दस्ते में भरती हुआ था और इटली- स्पेन और पुर्तगाल में युद्ध में भाग लिया। वर्ष 1822 में उसने लाहौर आकर महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में नौकरी की। उसे महाराजा की घुड़सवार सेना को यूरोपीय पद्धति के अनुसार प्रशिक्षण देने का काम सौंपा गया। इसके अतिरिक्त अल्लर ने सिख सेना में कारबाइन (एक छोटी राइफल) के उपयोग को शुरू किया। इन सब कारणों से वह दस्ते बहुत शक्तिशाली माने जाने लगे। इनके प्रभावस्वरूप महाराजा अपने राजनीतिक एवं सैनिक सलाहकार मानने लगे। अलार ने चम्बा की एक भारतीय बन्नू पान दाई से शादी की। यह मकबरा अलार और बन्नू की बेटी मारी शार्लोत की है,
जिसकी जन्म के कुछ ही महीनों बाद मृत्यु हो गई थी।
उस समय अलार के घर के साथ जो बाग था वहीं पर यह मकबरा बनाया गया था। चूंकि पंजाबी में लड़की को कुड़ी कहते हैं इसलिए उस जगह को 'कुड़ी बाग' कहा जाने लगा। कब्र के पीछे दीवार पर फ्रांसीसी में मृतक की याद में कुछ पंक्तियां लिखी हुई हैं,
कहा जाता
है कि
अल्लार की
पेशावर में
मौत के
बाद जब
उसकी देह
को पूरे
सम्मान के
साथ लाहौर
लाया गया।
लाहौर में
शादारा से
अनारकली तक
के तीन
मील के
रास्ते में
सेना के
जवान तैनात
थे जिन्होंने
बंदूक से
गोलियां चलाकर
शवयात्रा को
सम्मान दिया।
इसके बाद
में निकल
पड़ा एक
और ऐतिहासिक
कब्र देखने
जो बाम्बा
सोफिया जिंदा
की थी।
वह महाराजा
रणजीत सिंह
के बेटे
दिलीप सिंह
की पुत्री
थी। दिलीप
सिंह ने
एक विदेशी
महिला बाम्बा
मिलेर से
अलेक्सान्द्रिया
इजिप्ट में
7 जून,
1864 को शादी की थी और उनके तीन बेटे और तीन बेटियां थीं।
बाम्बा सोफिया का जन्म 21 सितंबर, 1869 को हुआ था। उन्होंने कर्नल सदरलैंड जो कि लाहौर के एक प्रसिद्ध डाक्टर और वहां के किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल थे से शादी की। उनकी कोई संतान नहीं थी। वर्ष 1955 में इन्हें लकवा हो गया और 10 मार्च, 1957 को मृत्यु तक वह शैयाग्रस्त रही। वह महाराजा रणजीत सिंह के परिवार की अंतिम सदस्या थी और उनकी मृत्यु के साथ रणजीत सिंह परिवार समाप्त हो गया। विवरण योग्य है। कि महाराजा दलीप सिंह का एक बेटा फ्रेडएरिक ब्रिटेन की सेना में भरती हो गया और उसने फ्रांस में प्रथम विश्व महायुद्ध में भाग लिया।
अंत में मैं बाम्बा सोफिया जिंदा के दादा, शेर-ए- पंजाब महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839) की समाधि के दर्शन करने पहुंचा। यह समाधि लाहौर के किले के पास है। ये ही वह स्थान है जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था ।
By K J S Chatrath
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This was first published in Dainik Tribune (Hindi), Chandigarh on June 15, 2008.
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